तुम्हारी आँखों के एकाकीपन से अधिक मुझे आकर्षित करता है उनका यदाकदा अचंभित होना। हम उतना ही दिखे जितना हम कर पाए स्वयं को व्यक्त अव्यक्त भीतर ही कहीं अंध गुफा बनता गया। व्यक्त करना एक ऐसी कला रही जिसे तुम्हारे संवादों से अधिक मौन ने बखूबी निभाया स्वर से अधिक तुम्हारे मुख की विश्रांति ने मेरी शिराओं में कंपन उत्पन्न किया। देखो, वहाँ दूर उतरती शाम की टूटती घाम बिखरने से अधिक सिमट रही है और यहाँ मैं तुम्हारे चुंबन के मध्य अधरों के ताप से बरसाती नदी में किसी हरे वृक्षों की भाँति टूटकर, बह निकली हूँ मेरी देह पर उभरे स्वेद कण उसी बरसाती नदी की विरासत हैं।। --सुनीता डी प्रसाद💐💐 तुम्हारी आँखों के एकाकीपन से अधिक मुझे आकर्षित करता है उनका यदाकदा अचंभित होना। हम उतना ही दिखे जितना हम कर पाए स्वयं को व्यक्त