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(मातृत्व- एक तनाव भी) स्त्री इस संसार में एक ऐसी

(मातृत्व- एक तनाव भी)

स्त्री इस संसार में एक ऐसी प्राणी है जिसे अगर इस संसार की गतिशीलता का एक महत्वपूर्ण अंग कहा जाए तो गलत नहीं होगा। मानव जीवन का आरंभ एक स्त्री के गर्भ में उसके जन्म से नौ महीने पहले ही हो जाता है। एक शिशु जब भ्रूणावस्था में होता है तभी से एक माँ अपने बच्चे का पालन करना शुरू कर देती हैं। वह उसके जीवन को लेकर कितनी ही चिंता करने लगती हैं। उसके जीवन की छोटी-छोटी बातों की कल्पना करते हुए, उसके भविष्य को सुरक्षित करने की योजनाएं बनाते हुए, उसे अपने गर्भ में रखकर तमाम तरह की शारीरिक एवं मानसिक परेशानियों से जूझते हुए उसके यह नौ महीने बड़े ही बेचैनी में गुजर जाते हैं।

 स्त्री इस संसार में एक ऐसी प्राणी है जिसे अगर इस संसार की गतिशीलता का एक महत्वपूर्ण अंग कहा जाए तो गलत नहीं होगा। मानव जीवन का आरंभ एक स्त्री के गर्भ में उसके जन्म से नौ महीने पहले ही हो जाता है। एक शिशु जब भ्रूणावस्था में होता है तभी से एक माँ अपने बच्चे का पालन करना शुरू कर देती हैं। वह उसके जीवन को लेकर कितनी ही चिंता करने लगती हैं। उसके जीवन की छोटी-छोटी बातों की कल्पना करते हुए, उसके भविष्य को सुरक्षित करने की योजनाएं बनाते हुए, उसे अपने गर्भ में रखकर तमाम तरह की शारीरिक एवं मानसिक परेशानियों से जूझते हुए उसके यह नौ महीने बड़े ही बेचैनी में गुजर जाते हैं।

कई बार माँ शिशु के जन्म के बाद अवसाद में चली जाती है जिसे पोस्टपार्टम डिप्रेशन डिसऑर्डर कहा जाता हैं। इस बीमारी की शुरुआत गर्भावस्था के दौरान ही हो जाती है जिसे नज़रअंदाज़ करने के यह एक बीमारी के रूप में बदल जाती हैं जिसके परिणाम आगे चलकर भयावह हो सकते हैं।

गर्भवती स्त्री के व्यवहार में पल-पल में दिख रहा बदलाव इस बात का पहला संकेत हैं कि वह एक अनचाहे अवसाद से लड़ रही हैं जिसके बारे में वह खुद ही नहीं जानती। अगर इसे गर्भावस्था में होने वाली एक सामान्य सी प्रकिया समझ कर नजरअंदाज कर दिया जाए तो आगे चलकर स्थिति बिगड़ सकती हैं। इस स्थिति में एक माँ अपने नवजात शिशु के प्रति उदासीन हो जाती है। 

एक माँ के लिए उसके शिशु का प्रत्येक क्षण असहनीय हो जाता हैं। वो उसे देखना तक पसंद नहीं करती और यहाँ तक कि उसे अपना स्तनपान भी नहीं कराती। ज्यादा बिगड़ी हुई स्थिति में माँ अपने बच्चे को चोट भी पहुंचा सकती हैं, यहाँ तक कि एक शिशु की जान को खतरा भी हो सकता है।
(मातृत्व- एक तनाव भी)

स्त्री इस संसार में एक ऐसी प्राणी है जिसे अगर इस संसार की गतिशीलता का एक महत्वपूर्ण अंग कहा जाए तो गलत नहीं होगा। मानव जीवन का आरंभ एक स्त्री के गर्भ में उसके जन्म से नौ महीने पहले ही हो जाता है। एक शिशु जब भ्रूणावस्था में होता है तभी से एक माँ अपने बच्चे का पालन करना शुरू कर देती हैं। वह उसके जीवन को लेकर कितनी ही चिंता करने लगती हैं। उसके जीवन की छोटी-छोटी बातों की कल्पना करते हुए, उसके भविष्य को सुरक्षित करने की योजनाएं बनाते हुए, उसे अपने गर्भ में रखकर तमाम तरह की शारीरिक एवं मानसिक परेशानियों से जूझते हुए उसके यह नौ महीने बड़े ही बेचैनी में गुजर जाते हैं।

 स्त्री इस संसार में एक ऐसी प्राणी है जिसे अगर इस संसार की गतिशीलता का एक महत्वपूर्ण अंग कहा जाए तो गलत नहीं होगा। मानव जीवन का आरंभ एक स्त्री के गर्भ में उसके जन्म से नौ महीने पहले ही हो जाता है। एक शिशु जब भ्रूणावस्था में होता है तभी से एक माँ अपने बच्चे का पालन करना शुरू कर देती हैं। वह उसके जीवन को लेकर कितनी ही चिंता करने लगती हैं। उसके जीवन की छोटी-छोटी बातों की कल्पना करते हुए, उसके भविष्य को सुरक्षित करने की योजनाएं बनाते हुए, उसे अपने गर्भ में रखकर तमाम तरह की शारीरिक एवं मानसिक परेशानियों से जूझते हुए उसके यह नौ महीने बड़े ही बेचैनी में गुजर जाते हैं।

कई बार माँ शिशु के जन्म के बाद अवसाद में चली जाती है जिसे पोस्टपार्टम डिप्रेशन डिसऑर्डर कहा जाता हैं। इस बीमारी की शुरुआत गर्भावस्था के दौरान ही हो जाती है जिसे नज़रअंदाज़ करने के यह एक बीमारी के रूप में बदल जाती हैं जिसके परिणाम आगे चलकर भयावह हो सकते हैं।

गर्भवती स्त्री के व्यवहार में पल-पल में दिख रहा बदलाव इस बात का पहला संकेत हैं कि वह एक अनचाहे अवसाद से लड़ रही हैं जिसके बारे में वह खुद ही नहीं जानती। अगर इसे गर्भावस्था में होने वाली एक सामान्य सी प्रकिया समझ कर नजरअंदाज कर दिया जाए तो आगे चलकर स्थिति बिगड़ सकती हैं। इस स्थिति में एक माँ अपने नवजात शिशु के प्रति उदासीन हो जाती है। 

एक माँ के लिए उसके शिशु का प्रत्येक क्षण असहनीय हो जाता हैं। वो उसे देखना तक पसंद नहीं करती और यहाँ तक कि उसे अपना स्तनपान भी नहीं कराती। ज्यादा बिगड़ी हुई स्थिति में माँ अपने बच्चे को चोट भी पहुंचा सकती हैं, यहाँ तक कि एक शिशु की जान को खतरा भी हो सकता है।
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