जिंदगी की आस नहीं थी बस लड़ना चाहता था। अंग्रेजी सियासत को जड़ से उखाड़ना चाहता था ।। होती अगर आज तो लड़ना नहीं चाहता। वह भी अंग्रेजी सियासत में होकर भारत को उजाड़ना चाहता।। लेकिन सपना था बस यही भारत को स्वतंत्र देखना चाहूं। जिंदगी की आस नहीं मुझे बस लड़ना चाहूं।। गोरों की सरकार को देश से निकालना चाहूं । बस देश में गणतंत्र की स्थापना चाहूं।। सपना पूर्ण हुआ "भगत" का स्वतंत्रता का। पर ना हुआ बौद्धिक अंत परतंत्रता का। मैं "वीण" काले अंग्रेजों से लड़ना चाहूं । देश की सच्ची स्वतंत्रता लाना चाहूं।। जिंदगी की आस नहीं मुझे बस लड़ना चाहूं। भगतसिंह