हकीकत' आईना तकब्बुर का, खुद से मिलने से ना- तकल्लुफ क्यों, मानता है आईना हमेशा तुम्हारी ही बात, फिर आईने से बगावत क्यों पेशवा हो तुम खुद के फिर , तुम्हारी जुबां पर यह तलख पन क्यों, बा-बज़ू हो जा शफ़्फ़ाक तू , धड़कन ए अजान अनसुना क्यों, जब अपने गुनाहों का वस्वसा हुआ, तो अब अ़ज़म है क्यों, ज़ाहिरन हकीकत से सामना, हुआ होगा तो क़सदन जे़र क्यों, खुद सानेहा और हलाक कर, अपनी खुशियों को अब तकलीफ क्यों, आईने ने अपना काम बाखूबी किया, फिर ख़ाक ए मज़ल्लत क्यों। ♥️ Challenge-595 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ विषय को अपने शब्दों से सजाइए। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।