मां -बापू ने थी खबर फैलाई, अब बिटिया की करनी थी विदायी। रामू चाचा नजर में कोई लड़का हो तो बताना, चाची आप भी अपने यहां पता लगाना। टेलीफोन का दौर न था, था चिट्ठियों का जमाना, लोगों को लोगों से बनती थी खूब, रिश्तेदारों का हमेशा लगा रहता था आना -जाना। बुआ आप भी अपना नजर घुमाना, फूफा आप कोई नेक सा परिवार ढूंढ कर लाना। अब अपनी परी सयानी हो चली है, शादी भी तो करनी है, नजर में रखना, अपनी बिटिया को सुख हीं सुख मिले, कोई अच्छा सा जमीनदार ढूंढना। अब था क्या..... जैसे -जैसे दिन बीत रहें थे, बाप के चेहरे पर चिंता की लकीरें और ज्यादा उभरने लगी। सबकुछ सहजता से संजोग कर रखने वाली मां, अब परेशान दिखने लगी। घर में एक -एक समान संजोग कर मां, अपनी परी की बिदाई के लिए रखने लगी। दहेज भी तो था देना, बाप अपना छोड़ औरों के यहां भी मेहनत करने लगा, बिटिया की व्याह रचाने में खर्च है इतना, सोच कर डरने लगा। लड़के वाले दहेज में क्या मांगेंगे, बाराती को क्या सब खिलाएंगे, घर सजेगा कैसे, क्या अपनी बिटिया की विदाई सही से कर पाएंगे। परी को था वादा किया, ये सब कैसे होगा? कैसे हम निभा पाएंगे? खेतों से आमदनी है हीं कितनी, कितना हम जमा कर पाएंगे? मेहमान आयेंगे इतने सारे, उनकी विदाई कैसे कर पाएंगे? सोच में डूबा बाप, खुद को समझाते हुए बोल उठा - जो होगा सब अच्छा होगा, जन्म दिया जब ऊपरवाले ने, अगर करम मेरा सच्चा होगा, सब पूरा करेगा वही, फिर मैं क्यूं सोचू कैसा होगा, जो होगा सब अच्छा होगा। धूमधाम से तो करूंगा हीं अपनी बिटिया की शादी, कोई कमी न होगी, जब आयेंगे बाराती। सजावट भी आलीशान हीं होगी, स्वागत जो मेहमान की होगी, देखेंगे सब, देखते हीं जाएंगे, कोई कमी नहीं, बिटिया की अरमान की होगी। हौसला रख, तू बाप है। गर सहम गया फिर ये पाप है। वो बेटी नहीं, तेरा चिराग है, एक बार देख मुड़कर घर के तरफ, वो न अंधियारा है, न हीं अभिशाप है।। फिर क्या.... ©dashing raaz भाग -8 मां -बापू ने थी खबर फैलाई, अब बिटिया की करनी थी विदायी। रामू चाचा नजर में कोई लड़का हो तो बताना, चाची आप भी अपने यहां पता लगाना। टेलीफोन का दौर न था, था चिट्ठियों का जमाना, लोगों को लोगों से बनती थी खूब, रिश्तेदारों का हमेशा लगा रहता था आना -जाना। बुआ आप भी अपना नजर घुमाना, फूफा आप कोई नेक सा परिवार ढूंढ कर लाना। अब अपनी परी सयानी हो चली है, शादी भी तो करनी है, नजर में रखना,