आवाजों का जंगल है भीतर,अति घना घनघोर बहुत परेशान कर देता है मुझे मेरे मन का शोर एक को चुप करवाऊं तो दूसरा बोल पड़ता है उलझा ही रहता है इसका कोई न कोई छोर जब कभी किसी दिन इसमें खोकर रह जाऊंगी हाथ थाम बाहर लायेगा तब कलम का ये ज़ोर आवाजों का जंगल है भीतर,अति घना घनघोर बहुत परेशान कर देता है मुझे मेरे मन का शोर एक को चुप करवाऊं तो दूसरा बोल पड़ता है उलझा ही रहता है इसका कोई न कोई छोर जब कभी किसी दिन इसमें खोकर रह जाऊंगी हाथ थाम बाहर लायेगा तब कलम का ये ज़ोर