त्योहारों के आगम पर देहरी रोती है सिसकती हैं दीवारें छत बेपाये से थरथरातें हैं ज़मीन पानी-पानी आँखें एकदम से खाली बिलखती है रसोईं... रुआँसा आँगन दोहराता है धमक थाप उन पैरों की सिहर जाता है घर! "घर" का भाव भीतर तक त्योहारों के आगम पर जब अगुआई में माँ नहीं होती! मन फूट-फूट कर रोता है लेकिन इन आँसुओं की कोई इल्तिज़ा नहीं होती लब पे तमाम दुआएँ हों सही पर अपने सिर पर शिफ़ा नहीं होती रौनकें होती त्योहारों पर घर मेरा भी "घर" सा लगता अगर पास मेरे भी मेरी माँ होती #toyou #loveyoumummy #yqhome #yqtime #yquncertainities #yqestrangement