पता नहीं क्या हुआ जो मैं चुपचाप सा था। तुम एक वृत्त थे और मैं एक चाप सा था।। कहना नहीं चाहता था कि कुछ भी कहूँ मगर मैं इसलिए ही अपने आप में शान्त सा था।। दुःख था कि तुम कहते ही नहीं थे कुछ, ये विवशता थी तुम्हारी यह तो पता था।। लेकिन इससे बड़ी बात यह भी थी एक मेरे कारण तुम्हें कोई समस्या हो यह नहीं चाहता था।। भुलाना चाहते तो एक झटके में भुला देते हम, हमने तुम्हें अपना यूँ ही तो नहीं कहा था।। तुम्हें यूँ ही तो अपना नहीं कहा था