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शहर इस शहर में मेरा एक घर तो है, पर ये शहर मेरा घर

शहर इस शहर में मेरा एक घर तो है, पर ये शहर मेरा घर नहीं है!!
©aditi_scorpio
-Read Caption- कल काम से थोड़ी फुर्सत मिली तो सोचा शहर घूम आऊं। कंधे पे बैग लटकाए ज्यों ही घर से निकली एक पल को ठिठक सी गई। ये समझ नहीं आया कि रुख करूं तो किधर का? दफ्तर से घर, घर से दफ्तर और वो इतवार को बाजार का एक चक्कर अब बस यही तो रूटीन था मेरा। ऐसे में कहां अचानक कोई नया पता तलाशूं। यहां की तो हर गली, हर सड़क मेरे लिए नई थी। इसमें कहां वो अपने पुराने शहर की पहचान ढूंढु मैं? यहां ना घर से निकलते ही बगल की दुकान पे बैठे चाचा का नमस्ते मिलता है, ना भइया चौक चलोगे का तकिया कलाम लबों पे आता है। कोई भी रास्ता य
शहर इस शहर में मेरा एक घर तो है, पर ये शहर मेरा घर नहीं है!!
©aditi_scorpio
-Read Caption- कल काम से थोड़ी फुर्सत मिली तो सोचा शहर घूम आऊं। कंधे पे बैग लटकाए ज्यों ही घर से निकली एक पल को ठिठक सी गई। ये समझ नहीं आया कि रुख करूं तो किधर का? दफ्तर से घर, घर से दफ्तर और वो इतवार को बाजार का एक चक्कर अब बस यही तो रूटीन था मेरा। ऐसे में कहां अचानक कोई नया पता तलाशूं। यहां की तो हर गली, हर सड़क मेरे लिए नई थी। इसमें कहां वो अपने पुराने शहर की पहचान ढूंढु मैं? यहां ना घर से निकलते ही बगल की दुकान पे बैठे चाचा का नमस्ते मिलता है, ना भइया चौक चलोगे का तकिया कलाम लबों पे आता है। कोई भी रास्ता य

कल काम से थोड़ी फुर्सत मिली तो सोचा शहर घूम आऊं। कंधे पे बैग लटकाए ज्यों ही घर से निकली एक पल को ठिठक सी गई। ये समझ नहीं आया कि रुख करूं तो किधर का? दफ्तर से घर, घर से दफ्तर और वो इतवार को बाजार का एक चक्कर अब बस यही तो रूटीन था मेरा। ऐसे में कहां अचानक कोई नया पता तलाशूं। यहां की तो हर गली, हर सड़क मेरे लिए नई थी। इसमें कहां वो अपने पुराने शहर की पहचान ढूंढु मैं? यहां ना घर से निकलते ही बगल की दुकान पे बैठे चाचा का नमस्ते मिलता है, ना भइया चौक चलोगे का तकिया कलाम लबों पे आता है। कोई भी रास्ता य