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घण्टी बोली- “जैसी आज्ञा प्रभु, नहीं बजूँगी। बाल कृ

घण्टी बोली- “जैसी आज्ञा प्रभु, नहीं बजूँगी। बाल कृष्ण ने खूब माखन चुराया और अपने सखाओं को खिलाया, घण्टी नहीं बजी। खूब बंदरों को खिलाया, घण्टी नहीं बजी। अंत में ज्यों हीं बाल कृष्ण ने माखन से भरा हाथ अपने मुँह से लगाया, त्यों ही घण्टी बज उठी। घण्टी की आवाज सुन कर जैसे ही ग्वालिन दौड़ी आई, सारे ग्वाल-बाल डरकर भाग गये लेकिन श्रीकृष्ण पकड़ में आ गये। बाल कृष्ण बोले- “तनिक ठहर जा गोपी, तुझे जो सजा देनी है वो दे दीजो, पर उससे पहले मैं जरा इस घण्टी से निबट लूँ ।" क्यों री घण्टी ! तू बजी क्यों? मैंने मना किया था न । ” घण्टी क्षमा माँगती हुई बोली- 'प्रभु! आपके सखाओं ने माखन खाया, मैं नहीं बजी। आपने बंदरों को खूब माखन खिलाया, मैं नहीं बजी, किन्तु जब आपने माखन खाया तब तो मुझे बजना ही था, मुझे आदत पड़ी हुई है प्रभु! जब मंदिर में पुजारी भगवान को भोग लगाते हैं तब घंटियाँ बजाते हैं, इसलिये प्रभु मैं आदतन बज उठी।

©Krishnadasi Sanatani
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