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सिमट गया था कुछ यूं मैं अपने आप में जैसे सिमटता है

सिमट गया था कुछ यूं मैं अपने आप में
जैसे सिमटता है कोई डर से भयानक रात में...

कुछ इस तरह से टूट के बिखरा था मैं
जैसे टूट के बिखरता है कोई आइना हजारो भाग में...

कुछ इस तरह से दूर हुआ था मेरी ही चमक से मैं
जैसे ढल जाता है चमकता सूरज अंधेरी रात में...

ये किस्साये मेरी मोहब्बत का है जनाब.....

कभी ऐसा था कि मोहब्बत दिल से नही गयी 
और फिर ऐसा हुआ कि दिल से रंजिशें न गयी...

©Harish Kumar(Harsh) #रंजिश

#reading
सिमट गया था कुछ यूं मैं अपने आप में
जैसे सिमटता है कोई डर से भयानक रात में...

कुछ इस तरह से टूट के बिखरा था मैं
जैसे टूट के बिखरता है कोई आइना हजारो भाग में...

कुछ इस तरह से दूर हुआ था मेरी ही चमक से मैं
जैसे ढल जाता है चमकता सूरज अंधेरी रात में...

ये किस्साये मेरी मोहब्बत का है जनाब.....

कभी ऐसा था कि मोहब्बत दिल से नही गयी 
और फिर ऐसा हुआ कि दिल से रंजिशें न गयी...

©Harish Kumar(Harsh) #रंजिश

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harishkumar7622

Harish Kumar

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