मैं बहना चाहूं , काश ये नदी ले जाए मुझको , अर्द्धशीश डूबें तरंगनी में , खेलूं उन तरंगों से , सरिता तुम्हारा वारि , मुझको शांत कर दे , देह को छूती शीतल लहरें , जीवन में उत्साह भर दें , मैं बहती रहूं , कोई किनारा न मिलें , अनंत अंबर को देखूं महकती धरा से , नयनों की तृप्ति हो जाए , उड़ान भरते विहग , मुझको भी सागर तक ले जाए । ©Bhanu Priya मैं बहना चाहूं , काश ये नदी ले जाए मुझको , अर्द्धशीश डूबें तरंगनी में , खेलूं उन तरंगों से , सरिता तुम्हारा वारि , मुझको शांत कर दे , देह को छूती शीतल लहरें , जीवन में उत्साह भर दें ,