मज़लूमों की दुआएँ, लेते रहो। मूल धरम का, दया ही तो है, तुलसी की वाणी, कहते रहो। होता नहीं है, अमर कोई, नीर से कल-कल, बहते रहो। लेखा नसीबों का, होकर रहेगा, सुख-दुखः हैं साथी, सहते रहो। आते नहीं , जाने वाले कभी, बनके रुदाली, चाहे रोते रहो। "फिराक़",नहीं रुकता, काल-चक्र कभी, चाहे सोते, चाहे हरदम, रोता रहो। 💱रचना का सार..📖 के साथ Collab करें..√..√ 🔻#Rks_रचना_संग्रह_170 💫रचना को शुद्ध एवं स्पष्ट रूप में लिखकर wallpaper में सजाएं, जिससे रचना सुंदर प्रतीत हो..!! 💫सभी रचनाकार अपनी इच्छानुसार असीमित रचनाएँ कर सकते हैं, इसमें कोई प्रतिबंधिता नहीं है..!! 💫रचना का सार..📖 के साथ हमेशा कुछ नया सीखते रहिये व अपने मित्रों को भी सिखाते रहिये..!!