हार गया तन-मन पुकार कर तुम्हें कितने एकाकी हैं प्यार कर तुम्हें जिस पल हल्दी लेपी होगी तन पर माँ ने जिस पल सखियों ने सौंपी होंगीं सौगातें ढोलक की थापों में, घुँघरू की रुनझुन में घुल कर फैली होंगीं घर में प्यारी बातें उस पल मीठी-सी धुन घर के आँगन में सुन रोये मन-चैसर पर हार कर तुम्हें कितने एकाकी हैं प्यार कर तुम्हें कल तक जो हमको-तुमको मिलवा देती थीं उन सखियों के प्रश्नों ने टोका तो होगा साजन की अंजुरि पर, अंजुरि काँपी होगी मेरी सुधियों ने रस्ता रोका तो होगा उस पल सोचा मन में आगे अब जीवन में जी लेंगे हँसकर, बिसार कर तुम्हें कितने एकाकी हैं प्यार कर तुम्हें कल तक मेरे जिन गीतों को तुम अपना कहती थीं अख़बारों मेें पढ़कर कैसा लगता होगा सावन को रातों में, साजन की बाँहों में तन तो सोता होगा पर मन जगता होगा उस पल के जीने में आँसू पी लेने में मरते हैं, मन ही मन, मार कर तुम्हें कितने एकाकी हैं प्यार कर तुम्हें हार गया तन-मन पुकार कर तुम्हें कितने एकाकी हैं प्यार कर तुम्हें ©Surya Kant Kumar viswas #jail