भरोसा हो गया अब मुझे सबेरे में। जीना नहीं है अब और अंधेरे में! अपने सपनों को नई राह दिखायें! फ़िर से एक नई मशाल जलायें। बादलों में चाँद घिरा तो क्या हुआ! चाहतों पे पानी गिरा तो क्या हुआ! धूप उम्मीदों की निकल ही आएगी सुहानी सी हवा भी चल ही जाएगी सब्र का फल मीठा होता है समझे! ख़्वाबों की जमीं में पसीना मिलायें। जैसा सोचा बैसा नहीं मिला है तो ! साथ मेरे आओ नया जहां बनाएँ। ♥️ Challenge-663 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें। ♥️ अन्य नियम एवं निर्देशों के लिए पिन पोस्ट 📌 पढ़ें।