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तो बात ये की हम दोनों की शुरुआत बहुत अजीब थी,पहला

तो बात ये की हम दोनों की शुरुआत बहुत अजीब थी,पहला दिन और किसी बात पे भीड़ गए थे हम।रास्ते इतने बदले की दो राहों पे खड़े हैं आज,उस वक़्त मगर बहुत नकचढ़े थे हम। बचपना कूट के भरा था तो एक साल कुछ यूं लडे थे हम,उम्र गुजरने पे हंसने वाले किस्से वो हुए थे हम।। अगले साल कुछ ही जान पहचान बनाई थी,मगर दोस्ती अभी भी हमारी नहीं ही हो पाई थी।गुज़रा एक और साल और अब भी जनाब से बात करना थोड़ा मुश्किल था,गुस्सा उनके नाक पे जो बैठा रहता था।अगर गलती से दिख जाओ किसी लड़के से बात करते उन्हें,तो पारा उनका तब भी आज जैसा ही चढ़ता था।।तबीयत के सीधे साधे ही थे ना जाने किस बात की अकड़ थी,मुझे लगता है शायद हमारे एक अलग देश जाने की उन्हें पहले से खबर थी।मिजाज़ के अब थोड़े से शांत हो हुए थे,गुस्सा मगर तब भी अपनी नाक पे ही लिए थे।वापस हुए उस शहर से तो दोस्ती आंखों में दिखने लगी थी,अब मगर लड़कों वाली आदतें सिर चढ़ बोल रही थी।अगले दो साल उनसे दूरियां हमने खासी बनाई थी,उनके नाम से अब तक नहीं यारी बनाई थी।।अब किस्से बड़े और हम भी चारदीवारी तोड़ आजाद हो लिए थे,और ये जनाब ज़िन्दगी में अब वापस दस्तक दिए थे। आना जाना फितरत है इनकी मगर यही इस रिश्ते की हकीकत है,रूह से बंधी बिन धागों के दोनों की ही सूरत है।कई साल गुज़र गए हैं साथ इस नोक झोक और यारी  को,बदला नहीं है आज भी कुछ जो करे अलग इस रिश्तेदारी को।जो भी था और है दर्मियांँ किस्सा बहुत हसीन है,दो नामों को बांधे एक पल हसीन है।लिखने बैठुं उसपे तो किताब शायद लिख जाऊं,दूरियां चाहे जितनी वो हमेशा दिल के करीब है।।
तो बात ये की हम दोनों की शुरुआत बहुत अजीब थी,पहला दिन और किसी बात पे भीड़ गए थे हम।रास्ते इतने बदले की दो राहों पे खड़े हैं आज,उस वक़्त मगर बहुत नकचढ़े थे हम। बचपना कूट के भरा था तो एक साल कुछ यूं लडे थे हम,उम्र गुजरने पे हंसने वाले किस्से वो हुए थे हम।। अगले साल कुछ ही जान पहचान बनाई थी,मगर दोस्ती अभी भी हमारी नहीं ही हो पाई थी।गुज़रा एक और साल और अब भी जनाब से बात करना थोड़ा मुश्किल था,गुस्सा उनके नाक पे जो बैठा रहता था।अगर गलती से दिख जाओ किसी लड़के से बात करते उन्हें,तो पारा उनका तब भी आज जैसा ही चढ़ता था।।तबीयत के सीधे साधे ही थे ना जाने किस बात की अकड़ थी,मुझे लगता है शायद हमारे एक अलग देश जाने की उन्हें पहले से खबर थी।मिजाज़ के अब थोड़े से शांत हो हुए थे,गुस्सा मगर तब भी अपनी नाक पे ही लिए थे।वापस हुए उस शहर से तो दोस्ती आंखों में दिखने लगी थी,अब मगर लड़कों वाली आदतें सिर चढ़ बोल रही थी।अगले दो साल उनसे दूरियां हमने खासी बनाई थी,उनके नाम से अब तक नहीं यारी बनाई थी।।अब किस्से बड़े और हम भी चारदीवारी तोड़ आजाद हो लिए थे,और ये जनाब ज़िन्दगी में अब वापस दस्तक दिए थे। आना जाना फितरत है इनकी मगर यही इस रिश्ते की हकीकत है,रूह से बंधी बिन धागों के दोनों की ही सूरत है।कई साल गुज़र गए हैं साथ इस नोक झोक और यारी  को,बदला नहीं है आज भी कुछ जो करे अलग इस रिश्तेदारी को।जो भी था और है दर्मियांँ किस्सा बहुत हसीन है,दो नामों को बांधे एक पल हसीन है।लिखने बैठुं उसपे तो किताब शायद लिख जाऊं,दूरियां चाहे जितनी वो हमेशा दिल के करीब है।।
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