आतिश-ए-शहर में हर सख्स को परेशाँ देखा दुख में मुब्तिला हिन्दू ओर मुसलमाँ देखा करके मुठ्ठी भर लोगो के हवाले शहर-ए-मोहब्बत को हमने बाजार को बनते शहर-ए-ख़ामोशा देखा लगा के दिलों में आग ज़ालिम को हंसते देखा, नफरत के चराग़ से शहर में चरागां देखा खामोश थे तुम भी जब मेरा घर जलाया गया आया तेरा घर ज़द में तो हमने भी तमाशा देखा चल पड़ा जो मुल्क फ़ितने की राह पे ग़ाफ़िल नक्शा-ए-आलम से उसके मिटते नाम-ओ-निशाँ देखा #ग़ाफ़िल^ #shayri #शायरी