a-person-standing-on-a-beach-at-sunset जनवरी पधारी जो,संग लेकर ठंड है। धूम यहाँ मचाई ये ,बढ़ गया घमंड है।। स्वेटर बंद बैगों से,बाहर निकले सभी। पजामे क्यों रहे बंदी,झट वे निकले तभी।। कहीं मार न खा जाऊँ,मन विचार ज्यों जगा। दमदार लड़ाई थी,देख ये ठंड भी भगा। तभी फरवरी आई,संग बसंत को लिये। फाल्गुन मार्च संगी हो,रंगीन सबको किये।। अप्रैल गरमाया है,शिथिल जो पड़े हुए। मई आते डरी पृथ्वी,ताप को सहते हुए।। जून प्रचंड लू से तो,सहमती धरा सदा। जुलाई भींग हर्षाई,मौज चली धरा मना।। अगस्त भींग ज़ोरों भी,राष्ट्रगीत बजा रहा। गुरु को शीश अभी जाके,सितम्बर झुका ज़रा ©Bharat Bhushan pathak #SunSet #सप्तश्लोकी_अनुष्टुप_छंद love poetry in hindi poetry on love hindi poetry hindi poetry on life poetry in hindi