लग चुकी है अब हमें आदत तुम्हारी । देखते रहते हैं बस मूरत तुम्हारी ।। ये गज़ल कुछ जम नहीं , रही मेरी। हाँ इसे भी चाहिये सूरत तुम्हारी ।। दिल तुम्हारा हमने भी लौटा दिया गर। कौन रखेगा फिर ये आफत तुम्हारी ।। नफ़रतों से कुछ नहीं होगा हमारा । हमें मारने को चाहिये चाहत तुम्हारी।। #Tumhari