जिंदगी दो पल की... थोडा ज़ाहिर सा थोडा छुपा है वो, थोडा काफिर सा थोडा खुदा है वो| दिल के बहुत करीब तो है मगर, फिर भी कुछ थोडा सा जुदा है वो| थोडा ज़ाहिर सा थोडा छुपा है वो… वक़्त, किस्मत, हालात और मजबूरी, जाने किस-किस से तन्हा लड़ा है वो| थोडा ज़ाहिर सा थोडा छुपा है वो… ज़ाहिर है ज़ख्म-ए-दिल के दागों से, हर दिन थोडा-थोडा मरा है वो| थोडा ज़ाहिर सा थोडा छुपा है वो… ज़ुल्म-ए-जिंदिगी से घबराता नहीं, बस खंजर-ए-लफ़्ज़ों से डरा है वो| थोडा ज़ाहिर सा थोडा छुपा है वो… मौत आती नहीं ऐसे ही पास ‘अंकुर’, पल-पल उसकी ओर चला है वो| थोडा ज़ाहिर सा थोडा छुपा है वो… जिंदगी दो पल की... थोडा ज़ाहिर सा थोडा छुपा है वो, थोडा काफिर सा थोडा खुदा है वो| दिल के बहुत करीब तो है मगर, फिर भी कुछ थोडा सा जुदा है वो| थोडा ज़ाहिर सा थोडा छुपा है वो…