तारीखों के घने जंगल में, फैसलों की डगर नही मिलती इन अदालतों के समंदर में, इन्साफ की लहर नही मिलती बिक जाते हैं, जमीन-जायदाद, खेत खलिहान बे-वजह राते तो सयाह होती है, कभी कभी सहर भी नहीं मिलती अदालतों