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हर तरफ बस एक मुद्दा छाया है ज्योति ने आलोक का दि

हर तरफ बस एक मुद्दा छाया है
  ज्योति ने आलोक का दिल दुखाया है 
   आलोक कह रहे हैं सबसे बार-बार
    हमने किया पत्नी से बेइंतहा प्यार
      होकर हमने गरीब साधन विहीन
       पत्नी को एसडीम बनाया है
       हर तरफ बस एक मुद्दा छाया है.............
        दोनों ही परिवारों की हुई धूमिल शान 
         जनता जनार्दन चला रही व्यंग्य बाण
          पति पत्नी का रिश्ता शरमाया है
          हर तरफ बस एक मुद्दा छाया है..........
           आलोक भी कर रहे बचाव में तीक्ष्ण प्रहार
           लग रहे सबको सच्चे , साथ में हैं उनके  जनाधार
            आपसी लड़ाई में दोनों गए भूल                        उनकी बगिया में खिले हैं दो प्यारे फूल
 जरूरी जिनको मां-बाप का साया है
 हर तरफ बस एक मुद्दा छाया है......... 
  आपसी लड़ाई को अब जाओ  बिसार 
   बांटो जग में प्यार , व्यव्हार और संस्कार
    जग हंसाई के सिवा और क्या तुमने पाया है
     हर तरफ बस एक मुद्दा छाया है...........
      कौन अब बहू को बेटी बुलाएगा
       पढ़ा लिखा कर अफसर कौन बनाएगा
         जाने कितने पतियों ने अपनी पत्नियों को
          पढ़ाई छुड़वा कर वापस घर बुलाया है 
          हर तरफ बस एक मुद्दा छाया है.........
           सबको मेरा कहना है भाई
            हर पति पत्नी में होती छोटी मोटी  लड़ाई
             नहीं कहते हम उसको भूला 
              शाम को लोट कर जो घर आया है
              हर तरफ बस एक मुद्दा छाया है........
    प्रेम को ढूंढ रहे दोनों आज दरबदर
      दोनों पति पत्नी से अच्छा कौन मिलेगा बेहतर
       परिवार खोकर क्या प्रेम किसी ने पाया है
       हर तरफ बस एक मुद्दा छाया है.........
       ज्योति ने आलोक का दिल दुखाया है 

 उपरोक्त कविता का उद्देश्य किसी की भावना को आहत करना नहीं है कविता के माध्यम से केवल जन साधारण द्वारा  अपनी भावना को व्यक्त किया गया है

©   satyarth vani
  #रिश्तों की मर्यादा

#रिश्तों की मर्यादा

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