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ज्ञान.....☺💐 अंतरिक्ष में भरा पडा है। अनन्त और नि

ज्ञान.....☺💐
अंतरिक्ष में भरा पडा है।
अनन्त और निराकार।
आकर्षण पैदा करके
खींचना पडता है।
यही तपस्या कहलाती है। 💕👴🍫🍫🍫☕☕☕☕🍧🍦🍦🍦🍦
:
[21/07 9:29 AM] Panchhi🐣: हमारे साहित्य और संस्कृति दोनों ही अद्भुद हैं ।इसे पढ़ समझ कर ठीक से जीवन का अंग बनाने का प्रयास किया जाए तो ।हम शून्य से अंनत तक की समझ दुनियां को दे सकते हैं ।
सृष्टि के विकास के साथ ही रहस्यमय ब्रह्माण्ड की रचनाओं में इंसान खोया हुआ है ।वेद पुराण ग्रंथ काव्य रचे गए और उस परमसत्ता को जानने के प्रयास जारी रहे एक दौर आया जीवनशैली बदली नास्तिकता बढ़ी बैज्ञानिक युग की सुरुआत हुई जिसमें सारी चीजों को प्रमाण के आधार पर स्वीकार करने की लालसा बढ़ी । "ईश्वर" वाला बिषय भी इसमें शामिल हुआ सबके अपने अपने तथ्य अपने अपने समीकरण और अपने अपने प्रमाण सामने आए जब वे एक दूसरे से अलग थलग पड़ने लगे तो नए नए पंथ सम्प्रदाय यहां तक कि भगवान तक बनालिये गए ।संसार में जनसंख्या बढ़ी तो वर्ग बन गए ये वर्ग अपनी अपनी सुविधाओं अनुसार व्यवहार करने लगे और विखण्डन सुरु हुआ आज यही विखण्डन सम्पूर्ण मानवीय भावनाओं को आतंकवाद ,नश्लभेद, जातिवाद, क्षेत्रवाद , नक्सलवाद आदि के रूप में सामने आया !
21/07 9:42 AM Panchhi🐣: आज इसका बिगड़ा स्वरूप समाजिक चेतना को परे कर दुराचार, भ्रष्टाचार, कदाचार,जैसे व्यवहार सामने आए और अनैतिकता का तांडव देखने को मिल रहा है।अगर इसे समझ कर इसपे नियंत्रण नहीं पाया गया तो आने वाले समय में जीवन पाशविक हो जाएगा !
आहार निद्रा भय और मैथुन के अलावा कुछ और शेष बचेगा ही नहीं ।इसलिए बुद्धिजीवी वर्ग को बड़े बड़े धर्मगुरुओं और संतों को देश की युवापीढ़ी को अपनी संस्कृति सभ्यता का आत्मिक धरातल पर बोध कराने का प्रयास करना हैं ।
☕☕😊😊😊💕💕💓💓🍦🍧🍫👴☕🍧💕🍧🍦☕
ज्ञान.....☺💐
अंतरिक्ष में भरा पडा है।
अनन्त और निराकार।
आकर्षण पैदा करके
खींचना पडता है।
यही तपस्या कहलाती है। 💕👴🍫🍫🍫☕☕☕☕🍧🍦🍦🍦🍦
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[21/07 9:29 AM] Panchhi🐣: हमारे साहित्य और संस्कृति दोनों ही अद्भुद हैं ।इसे पढ़ समझ कर ठीक से जीवन का अंग बनाने का प्रयास किया जाए तो ।हम शून्य से अंनत तक की समझ दुनियां को दे सकते हैं ।
सृष्टि के विकास के साथ ही रहस्यमय ब्रह्माण्ड की रचनाओं में इंसान खोया हुआ है ।वेद पुराण ग्रंथ काव्य रचे गए और उस परमसत्ता को जानने के प्रयास जारी रहे एक दौर आया जीवनशैली बदली नास्तिकता बढ़ी बैज्ञानिक युग की सुरुआत हुई जिसमें सारी चीजों को प्रमाण के आधार पर स्वीकार करने की लालसा बढ़ी । "ईश्वर" वाला बिषय भी इसमें शामिल हुआ सबके अपने अपने तथ्य अपने अपने समीकरण और अपने अपने प्रमाण सामने आए जब वे एक दूसरे से अलग थलग पड़ने लगे तो नए नए पंथ सम्प्रदाय यहां तक कि भगवान तक बनालिये गए ।संसार में जनसंख्या बढ़ी तो वर्ग बन गए ये वर्ग अपनी अपनी सुविधाओं अनुसार व्यवहार करने लगे और विखण्डन सुरु हुआ आज यही विखण्डन सम्पूर्ण मानवीय भावनाओं को आतंकवाद ,नश्लभेद, जातिवाद, क्षेत्रवाद , नक्सलवाद आदि के रूप में सामने आया !
21/07 9:42 AM Panchhi🐣: आज इसका बिगड़ा स्वरूप समाजिक चेतना को परे कर दुराचार, भ्रष्टाचार, कदाचार,जैसे व्यवहार सामने आए और अनैतिकता का तांडव देखने को मिल रहा है।अगर इसे समझ कर इसपे नियंत्रण नहीं पाया गया तो आने वाले समय में जीवन पाशविक हो जाएगा !
आहार निद्रा भय और मैथुन के अलावा कुछ और शेष बचेगा ही नहीं ।इसलिए बुद्धिजीवी वर्ग को बड़े बड़े धर्मगुरुओं और संतों को देश की युवापीढ़ी को अपनी संस्कृति सभ्यता का आत्मिक धरातल पर बोध कराने का प्रयास करना हैं ।
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