जिसका घर जमीं पे हो ..आसमान से क्या लेना... किसी का शौहर नहीं रहा जो..उसको चांद से क्या लेना... देखें छलनी से वही चांद को..चांद जिसका बाहों में हो... जो संग बन्दूक सरहद पर हो..उसको चांद से क्या लेना... दिन में ओझल जो रहता है..रात अाई तो नजर आए... ऐसे आधे अधूरे से ....रोशन दान से क्या लेना... सरहद मां का आंचल है जो..मेरा चांद यहीं तक है... मां जो घर में मुझे निहारे...उसको चांद से क्या लेना... आपके चांद सलामत रहे बस..कईयों के चांद सरहद पर है.... वर्दी में जिसका चांद खड़ा है...उसको चांद से क्या लेना.... सरहद पार चांद वहीं है...फिर ये लड़ाई किस चांद की... खैर हमारा चांद हमारी तरफ का..उधर के चांद से क्या लेना.... 🖋राज़ बरवड़ "सरहदी" 6376492914 "सरहद का चांद" #6376492914