*बचपन की पाठशाला* रोज सुबह जब आंख खुलती गृहकार्य रहता था बाकी कंधे पर था भारी बस्ता हाथ में टिफिन थमाती काकी ना भूल सका उस पल को कोई अंग बन गए जीवन के थे स्कूल ओ बचपन के- 2 कदम नापते चलते रहते रहे दूर घंटी बज जाती आंख बंद कर करे प्रार्थना आंखे बार बार खुल आती गुरु जी के डंडे का डर था ना करने देते मन के थे स्कूल ओ बचपन के-2 #बचपन_की_पाठशाला रोहित तिवारी । Reshma Jabeen Jayanti Kumari Upadhyay Ravi Chandra Write_The_Feelings