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**आत्म-स्वभिमान** कितना भी कुछ हो जा

             **आत्म-स्वभिमान**

कितना भी कुछ हो जाये
आत्मस्वाभिमान न गिरने देना,
क्योंकि जिसकी वजह से
आत्मविश्वास टूटने की नौबत आये, 
वह कभी अपना न होगा और
जो अपना होगा वह जान देकर भी
आपके स्वाभिमान की रक्षा करेंगे 
तभी तो वे अपने है। 
यही कौसटी है अपने और पराये की। 
कहते है जिस समय खेल में
 वजीर और इंसान में ज़मीर मर जाए 
उसी वख्त सब खत्म हो जाता है।

©Prashant Roy
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