हम फ़ना हो जाएंगे अब तुम्हारे प्यार में। फूल जीवन में खिलें या हों गुजारें ख़ार में। बस रज़ा दिल की ये मेरे दूर जाएंगे नहीं! आईना ख़ुद का बनालेंगे हम दिलदार में । बस तवाक्कुल के सहारे मुद्दतें होतीं रहीं! वक्त से छूटी गई ये ज़िन्दगी भी ज़ार में। तो इलाही हुक़्म की तामील करनी चाहिए! पीर सूफ़ी संत सारे रीजा किए हैं प्यार में। वहदत-उल-शुहुद से परहेज़ मुझ्को है नहीं! वहदत-उल-वुजुद ही चाहूँ में अपने यार में। दिल इबादतगाह तेरा बन गया मेरा सनम! मैं दिवाना सुलह-ए-कुल चाहता संसार में। ख़ुश नसीबी सी लगे अब फ़कीरी में मुझे! फ़िक्र 'पंक्षी' को नहीं उनके ही इनक़ार में। हम फ़ना हो जाएंगे अब तुम्हारे प्यार में। फूल जीवन में खिलें या हों गुजारें ख़ार में। बस रज़ा दिल की ये मेरे दूर जाएंगे नहीं! आईना ख़ुद का बनालेंगे हम दिलदार में । बस तवाक्कुल के सहारे मुद्दतें होतीं रहीं! वक्त से छूटी गई ये ज़िन्दगी भी ज़ार में।