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एक दिन हम भी चले मेट्रो जी चलो सफर कर आते है स्ट

एक दिन हम भी चले मेट्रो जी चलो सफर

कर आते है

स्टेशन पर जब हम पहुंचे फिर आगे हाल 

सुनाते हैं 

साफ सफाई थी बहुत ही सुन्दर देख के मन

हर्षाया था

नई उमर के लड़का लडकी क्या जोड़ा खुब

बनाया था

पहनावे का रंग ढंग देखा आधा बदन

उघाड़ा था

सिंगल कपड़ा एक बदन पे जोर पकड़ता

जाड़ा था 

हाथ हाथ मे थाम रहा कोई था बांहों मे

खीच रहा

बेशर्मी का गज़ब नज़रा मैं देख के आंखे

मीच रहा

एक जोड़े को मेने देखा कर वो हद को

पार गए

एक दूजे को लगे चूमने हां कर वो गंदी

कार गए 

देख अचंभित हुआ सीन हम मन अपना 

समझाते हैं

एक दिन हम भी चले मेट्रो जी चलो सफर

कर आते है 

आधुनिकता हमने माना पर क्यू इतना

गिर जाती है

संस्कृति का हनन हुआ है देख आंख

शरमा जाती है 

मां बापू की गलती सारी क्या शिक्षा और

संस्कार दिए

देखभाल ना समझी करनी और मैट्रो

तार दिए

जरा जरा सी उमर मे बच्चे लैला मजनू

बने हुए

आज आशिकी मिले चरम पे गुल स्टेशन

पे खिले हुए

हाथ मे सबके मिले मोबाइल फ़ोन किया

आ जाते है

कुछ कहने की हिम्मत किसकी हम देख

देख शरमाते हैं 

घटना घटती फिर रैप मर्डर की फिर सब

शोर मचाते हैं

एक दिन हम भी चले मेट्रो जी चलो सफर 

कर आते है 


ऋषिपाल भाटी

©Rishipal Bhati
  #मेट्रोसफर