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दर्द ,तक़लीफ़... कभी जाते नहीं हैं। शिद्दत कम हो जात

दर्द ,तक़लीफ़... कभी जाते नहीं हैं। शिद्दत कम हो जाती है फिर भी टीस हमेशा बनी रहती है।
बस ये है कि, उन पर 'आज' का भार इतना लदने लगता है कि वो दर्द नीचे दबता चला जाता है, इतना कि बस इस कुचले हुए दर्द की कराह कभी कभी सुनाई देती है। 
मैंने भी आज की ज़िम्मेदारियों का भार इस पे लादना शुरू कर दिया है, जितना ज़्यादा भार, उतनी जल्दी दर्द के शोर से छुटकारा । 
वैसे , दर्द- तक़लीफ़ ... कभी जाते नहीं हैं। musings - 19/9/18
दर्द ,तक़लीफ़... कभी जाते नहीं हैं। शिद्दत कम हो जाती है फिर भी टीस हमेशा बनी रहती है।
बस ये है कि, उन पर 'आज' का भार इतना लदने लगता है कि वो दर्द नीचे दबता चला जाता है, इतना कि बस इस कुचले हुए दर्द की कराह कभी कभी सुनाई देती है। 
मैंने भी आज की ज़िम्मेदारियों का भार इस पे लादना शुरू कर दिया है, जितना ज़्यादा भार, उतनी जल्दी दर्द के शोर से छुटकारा । 
वैसे , दर्द- तक़लीफ़ ... कभी जाते नहीं हैं। musings - 19/9/18