मैं जीवन किस मूल रहूँ, कब तक जीवन शूल सहूँ, तन-मन पीड़ा इन शूलों से; किसको इसकी मैं भूल कहूँ, मैं जीवन किस मूल रहूँ, पग-पग बढ़ती चलती हूँ मैं; गिरती-पड़ती उठती हूँ मैं; अब कितना संग मैं धूल चलूँ, मैं जीवन किस मूल रहूँ, हर भाव जगत में कथ्य नहीं, हरियाली ही तो सत्य नहीं, पर काँटो को कैसे फूल कहूँ, मैं जीवन किस मूल रहूँ, कब तक जीवन शूल सहूँ, #मैंजीवनकिसमूलरहूँ