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*❤ आशीर्वाद भरी दीवाली ❤* *एक दिन एक महिला ने अपनी

*❤ आशीर्वाद भरी दीवाली ❤*
*एक दिन एक महिला ने अपनी रसोई से सभी पुराने बर्तन निकाले। पुराने डिब्बे, प्लास्टिक के डिब्बे, पुराने डोंगे, कटोरियां, प्याले और थालियां आदि। सब कुछ काफी पुराना हो चुका था।*

फिर सभी पुराने बर्तन उसने एक कोने में रख दिए और बाजार से नए लाए हुए बर्तन ढ़ग से रखकर सजा दिए।

*बड़ा ही सुन्दर लग रहा था अब उसका रसोई। फिर वो सोचने लगी कि अब ये पुराना सामान भंगारवाले‌ को दे दिया जाए तो समझो हो गया काम ,साथ ही सिरदर्द भी ख़तम औऱ सफाई का सफाई भी हो जाएगी।*

इतने में उस महिला की कामवाली आ गई। दुपट्टा खोंसकर वो फर्श साफ करने ही वाली थी कि उसकी नजर कोने में पड़े हुए पुराने बर्तनों पर गई और बोली- बाप रे! भाभीजी आज इतने सारे बर्तन घिसने होंगे क्या? और फिर उसका चेहरा जरा तनावग्रस्त हो गया।

महिला बोली-अरी नहीं! ये सब तो भंगारवाले को देने हैं...सब बेकार हैं मेरे लिए ।

*कामवाली ने जब ये सुना तो उसकी आंखें एक आशा से चमक उठीं और फिर चहक कर बोली- भाभीजी! अगर आपको कष्ट ना हो तो ये एक पतीला मैं ले लूं? (साथ ही साथ उसकी आंखों के सामने उसके घर में पड़ा हुआ उसका इकलौता टूटा पतीला नजर आ रहा था)*

महिला बोली- अरी एक क्यों! जितने भी उस कोने में रखे हैं, तू वो सब कुछ ले जा अगर तेरे काम के हैं तो । मेरा उतना ही सिरदर्द कम होगा।

कामवाली की आंखें फैल गईं- क्या! सब कुछ?
*उसे तो जैसे आज कोई अनचाहा समान ही मिल गया था। फिर उसने अपना काम फटाफट खत्म किया और सभी पतीले, डिब्बे और प्याले वगैरह सब कुछ थैले में भर लिए और बड़े ही उत्साह से अपने घर के लिए निकली।*
आज तो जैसे उसे चार पांव लग गए थे। घर आते ही उसने पानी भी नहीं पिया और सबसे पहले अपना पुराना और टूटने की और अग्रसर हुआ पतीला और टेढ़ा मेढ़ा चमचा वगैरह सब कुछ एक कोने में जमा किया, और फिर अभी लाया हुआ समान (बर्तन) ठीक से जमा दिया।

*आज उसके एक कमरेवाला रसोई का कोना सुंदर दिख रहा था।*

तभी उसकी नजर अपने पुराने बर्तनों पर पड़ी और फिर खुद से ही बुदबुदाई- अब ये सामान भंगारवाले को दे दिया कि समझो हो गया काम।

*तभी दरवाजे पर एक भिखारी जल मांगता हुआ हाथों की अंजुल करके खड़ा था- मां! पानी दे।*

कामवाली उसके हाथों की अंजुल में पानी देने ही जा रही थी कि उसे अपना पुराना पतीला नजर आ गया और फिर उसने वो पतीला भरकर जल भिखारी को दे दिया।

*जब जल पीकर और तृप्त होकर वो भिखारी बर्तन वापिस करने लगा तो कामवाली बोली- फेंक दो कहीं भी।*

वो भिखारी बोला- तुम्हें नहीं चाहिए? क्या मैं रख लूं मेरे पास?

*कामवाली बोली- रख लो, और ये बाकी बचे हुए बर्तन भी ले जाओ और फिर उसने जो-जो भी भंगार समझा वो उस भिखारी के झोले में डाल दिया।*

वो भिखारी खुश हो गया।

जल पीने को पतीला और किसी ने खाने को कुछ दिया तो चावल, सब्जी और दाल आदि लेने के लिए अलग-अलग छोटे-बड़े बर्तन, और कभी मन हुआ कि चम्मच से खाये तो एक टेढ़ा मेढ़ा चम्मच भी था।

आज उसकी फटी झोली भी अच्छी दिख रही थी

.........

*सुख किसमें माने, ये हर किसी की परिस्थिति पर अवलंबित होता है।*

हमें हमेशा अपने से छोटे को देखकर खुश होना चाहिए कि हमारी स्थिति इससे तो अच्छी है। जबकि हम हमेशा अपनों से बड़ों को देखकर दुखी ही होते हैं और यही हमारे दुख का सबसे बड़ा कारण होता है।

*हमेशा जरूरतमंद को देने की आदत डालने से एक घेरा बनता जाता है। अगर हम उस घेरे को हमेशा ध्यान में रखें तो घेरे के अंतिम लाभार्थी का आशीर्वाद, पहले दानदाता को मिलता है।*

दीपावली की सफाई शुरू हो गई है, हमारी शुभकामनाएं हैं आपका घर नये बर्तन, कपड़े, फ़र्नीचर से जगमग हो, पुराने का क्या करना है आप बहुत बेहतर जानते हैं!
*बस आपकी झोली हमेशा आशीर्वाद से भरी रहे, यही ईश्वर से प्रार्थना है!*
  🙏 *आप सभी की दीपावली शुभ और मंगलमय होवे!* 🙏
       
_*अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को भी शुभकामनाएं भेजें!*

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