टूट टूट कर जी रहे थे अब तक टूटी जिंदगी में ही सिमट जाएंगे क्या अब बिखरे हुए फूल से जो अरमान रहे अब तक सूखे झाड जैसे और उजाड़ हो जाएंगे क्या अब घुट घुट कर जैसे तैसे निभाई अब तक घुटन में और सांस ले पाएंगे क्या अब ख़्वाबों के महल जो खंडहर हो चुके अब तक उन्ही घहराइयों में दब कर रह जाएंगे क्या अब क्यों नहीं उबर सकते क्यों नहीं निकल सकते क्यों नहीं सवंर सकते क्यों नहीं हरे हो सकते फूल खिलेंगे एक दिन जरूर खुली हवा सांसो को मिलेगी एक दिन जरूर निकलेंगे बाहर छूने आकाश को एक दिन जरूर जिंदगी मुस्कुराएगी एक दिन जरूर गवाह होंगे हम उस पल के एक दिन जरूर एक दिन जरूर #justthinkpositive #shriradhekrishna