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द्वितीय अध्याय, श्लोक 47 कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फल

द्वितीय अध्याय, श्लोक 47
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोस्त्वकर्मणि॥
अर्थ -
कर्म पर ही तुम्हारा अधिकार है, कर्म के फलों में कभी
नहीं... इसलिए कर्म को फल के लिए मत करो।
कर्तव्य-कर्म करने में ही तेरा अधिकार है फलों में कभी
नहीं। अतः तू कर्मफल का हेतु भी मत बन और तेरी
अकर्मण्यता में भी आसक्ति न हो।

©KhaultiSyahi
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