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ज़ेहन में वो ऐसे याद आए जैसे सुबह-सुबह का ख़्वाब हो

ज़ेहन में वो ऐसे याद आए

जैसे सुबह-सुबह का ख़्वाब हो

ख़्वाब में वो ऐसे आए

जैसे छत पर आया महताब हो

महताब के नूर में आँखे झपकी रही

लगा मानो इश्क़ में हम सुपुर्द-ए-खाक हो ।

                      ………….अनुराग सक्सेना

 सुपुर्द ए खाक
ज़ेहन में वो ऐसे याद आए

जैसे सुबह-सुबह का ख़्वाब हो

ख़्वाब में वो ऐसे आए

जैसे छत पर आया महताब हो

महताब के नूर में आँखे झपकी रही

लगा मानो इश्क़ में हम सुपुर्द-ए-खाक हो ।

                      ………….अनुराग सक्सेना

 सुपुर्द ए खाक

सुपुर्द ए खाक