लोग हर मोड़ पे रुक-रुक के संभलते क्यों हैं, इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यों हैं,, मैं न जुगनू हूँ, दिया हूँ न कोई तारा हूँ, रोशनी वाले मेरे नाम से जलते क्यों हैं,, नींद से मेरा ता-अल्लुक़ ही नहीं बरसों से, ख़्वाब आ आ के मेरी छत पे टहलते क्यों हैं,, मोड़ होता है जवानी का संभलने के लिए, और सब लोग यहीं आके फिसलते क्यों हैं..! ©ᴋʜᴀɴ ꜱᴀʜᴀʙ #इतना_डरते_हैं_तो_फिर_घर_से_निकलते_क्यों_हैं,,, hindi poetry on life poetry in hindi