ओ अनहलक कितनी खाखों का रूदन तेरे कानों तक जाएगा कितनी लाशों का धुआं तेरी आंखें जलाएगा मैं नहीं तोल सकता मुर्दों को तराजू में.... अब तू ही बोल कब तक गरीब हवा का पैसा उधार ले कर चुकाएगा... कितनी रूहों का स्वाद चख कर मौत दरवाजे पर खड़ी है ... तू ही बता ओ अनहलक! इसकी भूख कैसे मिटाएगा ..... बेबसी पसर गई है तेरे बगीचों में झड़ गया है हर गुल सजर के गुचों से वीरान है गुलज़ार तेरे इंसानों के सुवों से.... तू ही बता ओ अन्हलक उजड़े हुए बगीचों के बुटों को पानी कैसे पिलाएगा ..... #विचित्र... रक्षा कर मालिक #covidindia