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तेरे पैरों को छू कर के राह बनी है धूप सोच ना था क

तेरे पैरों को छू कर के राह बनी है धूप 
सोच ना था कोई सफ़र का ऎसा भी है रूप 

मंज़िल का कोई पता नहीं,और लगता नहीं ज़रूरी है 
तू जो मेरे साथ चले तो फिर कैसी मज़बूरी है 
हर लम्हा है नूर से रौशन जैसे चाँद अनूप
तेरे पैरों को छू कर के राह बनी है धूप 

सरगम से बहते हैं लम्हे, इत्र जो तेरा तारी है 
आफ़ताब बनने की देखो आज गुलों की बारी है 
आसमान सा अंतहीन है तेरा ब्रह्म स्वरूप 
तेरे पैरों को छू कर के राह बनी है धूप 

तू जो मुझ में है ज़ाहिर तो अंधेरों से डरना क्या 
रात हो चाहे जितनी गहरी रुक कर मुझको करना क्या 
तू ज़ुम्बिश है क़ायनात की नियती निगम निरूप
तेरे पैरों को छू कर के राह बनी है धूप 

माया है पर साँसों पर सच बन कर के भारी है 
तुझमें मुझमें क्षणभिंगुर ये श्रिष्टी सिमटी सारी है 
एक लम्हे में अंतहीन सब होगा अगम अलूप
तेरे पैरों को छू कर के राह बनी है धूप

उदासियाँ@ राह बनी है धूप
शाइस्ता

©Mo k sh K an #उदासियाँ_the_journey 
#poem 
#Poetry 
#Nojoto 
#mokshkan 
#Zen 
#shaista 
#शाइस्ता
तेरे पैरों को छू कर के राह बनी है धूप 
सोच ना था कोई सफ़र का ऎसा भी है रूप 

मंज़िल का कोई पता नहीं,और लगता नहीं ज़रूरी है 
तू जो मेरे साथ चले तो फिर कैसी मज़बूरी है 
हर लम्हा है नूर से रौशन जैसे चाँद अनूप
तेरे पैरों को छू कर के राह बनी है धूप 

सरगम से बहते हैं लम्हे, इत्र जो तेरा तारी है 
आफ़ताब बनने की देखो आज गुलों की बारी है 
आसमान सा अंतहीन है तेरा ब्रह्म स्वरूप 
तेरे पैरों को छू कर के राह बनी है धूप 

तू जो मुझ में है ज़ाहिर तो अंधेरों से डरना क्या 
रात हो चाहे जितनी गहरी रुक कर मुझको करना क्या 
तू ज़ुम्बिश है क़ायनात की नियती निगम निरूप
तेरे पैरों को छू कर के राह बनी है धूप 

माया है पर साँसों पर सच बन कर के भारी है 
तुझमें मुझमें क्षणभिंगुर ये श्रिष्टी सिमटी सारी है 
एक लम्हे में अंतहीन सब होगा अगम अलूप
तेरे पैरों को छू कर के राह बनी है धूप

उदासियाँ@ राह बनी है धूप
शाइस्ता

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