अलग नगर के कोलाहल से, अलग पूरी-पूरजन से, कठिन साधना में उद्योगी लगा हुआ तन-मन से। निज समाधि में निरत सदा निज कर्मठता में चूर, वन्य कुसुम-सा खिला कर्ण जग की आँखों से दूर। ©bunny रश्मिरथी stanza :- 6