यादों के रंगीन दरीचे में जब भी बैठे संभाला बहुत पर संभलती नहीं है लरजती फिसलती ठहरती फिज़ा में यादों की एक गठरी खुल सी गई है। उनींदी आंखों से देखे थे जो सपने वो बताती बहुत है पर सुनती नहीं है हर बार दिखता है एक नया सा तेवर हर मुलाकात में कुछ बदल सी गई है। मुझको तो है ठहरे मौसम से यारी वह दुनिया के कलेवर में ढलती गई है मैं ठहरा हुआ हूं अब भी यहां पर उसको आगे था जाना, वो चलती गई है। #यादों_के_पन्ने_से #yqdidi #yqhindipoetry #jayakikalamse