गुजरते वक़्त में धुंधली पड़ रहीं हैं, मेरे ज़हन की तहरीरें, तुम्हे कोई चश्मा मिले तो ला देना। हो कोई मय, जिसे पियो, और नशा कभी उतरे ही नहीं, तो मेरे दोस्त, मेरे पास बैठना, पिला देना। वो खुआब, जो खुआब ही ना रहे, हकीक़त भी बने, मैं जागता रहूंगा, मगर दिखा देना। जिसमें चेहरे ही ना दिखें, ये दिल भी दिखता हो, कहीं मिले जो तुम्हें, वो आईना देना।। - Nitin Kr Harit गुजरते वक़्त में धुंधली पड़ रहीं हैं, मेरे ज़हन की तहरीरें, तुम्हे कोई चश्मा मिले तो ला देना। हो कोई मय, जिसे पियो, और नशा कभी उतरे ही नहीं, तो मेरे दोस्त, मेरे पास बैठना, पिला देना। वो खुआब, जो खुआब ही ना रहे, हकीक़त भी बने, मैं जागता रहूंगा, मगर दिखा देना।