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सौगन्ध खाकर जीत की, दहलीज तक पहुँचा है तू । अब थोङ

सौगन्ध खाकर जीत की,
दहलीज तक पहुँचा है तू ।
अब थोङा सा ऐसा  प्रण कर ,
जीत को भी जीत लूँगा।।
मंजिल पर निशाना साधना,
नामुमकिन बिल्कुल नहीं है ।
कह काल के भी गाल से,
 विजय पताका खींच लूँगा ।।
पुष्पेन्द्र"पंकज "

©Pushpendra Pankaj
   जीत लूँगा

जीत लूँगा #कविता

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