तुम्हारा मिलना महज इत्तफ़ाक़ नहीं था कुछ साजिशो के बल पर तुम भी आए थे मुझे जिन्दगी के एक बडे. सच से रुबरु कराने आए थे तुम्हारी चाहत नकली वेश बनाकर घुम रही थी अपना मतलब ढुँढते -ढुँढते इधर- उधर भटक रही थी आज मेरी डायरी के पन्ने खत्म होने को आए लेकिन तुम्हारा ज्रिक करते करते कलम नही थकी हैं आज फिर से तुम्हारे वेश में किसी को देख लिया आज फिर से किसी का दोस्ती से भरोसा उठते देख लिया. Bhawana Pandey #Bhawanapandey