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कभी कभी सोचता हूं क्या तुमको भी मेरी याद आती होगी

कभी कभी सोचता हूं क्या तुमको भी मेरी याद आती होगी 
जिस तरह रात में जाग जाता हूं उस हिस्से को टटोलते हुए जो तुम्हें सजोते वक्त कहीं खो गया था 
क्या तुमको भी मेरे जागने का आभास होता होगा 
तुम्हारे दुखी होने का आभास मुझे यहां तक हो जाता हैं 
में सोचता था इंसान पुरानी यादों को नकार देता हैं दफना देता हैं मेरे हिस्से उन्हीं यादों का काफिला आया जो मुझे अक्सर बेचैन कर देता हैं 
क्या तुम भी मेरे तरह फोन मैं केसे हो लिख कर अनसेंड कर देते हो रुक जाते हो हाल चाल पूछते पूछते 
क्या तुम भी हमारी यादों मैं जीते हो जैसे मैं जीता हूं उन्हें
खैर मैं समझता हूं बीते बातों को भुला देना ही बेहतर होता हैं 
में भी तुम्हे बीते कल की तरह भूलता जा रहा हूं मेरी जिन्दगी को सार्थक बनाने की ओर ये मेरा पहला कदम हैं 
और अब मैंने भगवान को पूजना भी शुरू कर दिया है इसलिए नहीं कि मुझ उनसे कोई शिकायत थी या तुमसे बल्कि इसलिए मुझे  उनसे सुकून मिलता हैं और हो भी क्यों ना जिंदगी में आगे बढ़ने का तरीका जो नहीं ढूंढ पाया मैं 
अक्षर एक खयाल आता हैं
 मेरे हिस्से आया एकांत और तुम्हारे हिस्से आया मैं फिर ऐसी क्या वजह थी जो तुम इतना आगे बड़ गए जो अब  चाह कर भी वापिस नहीं आओगे 
और तो कोई शिकायत नहीं रही तुमसे ,बस इतना ही कहना हैं कि 
I  hate you I really do and I mean it 
खैर यादों। का काफिला भी बसंत सा होता हैं 
अब मैं अग्रसर हूं बसंत से पतझड़ की ओर

©pankaj
  sel

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pankaj

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