आंसू रचना नंबर 3 नामुमकिन है अब लौट आना हम निकल चुके हैं आंसू की तरह आसूं जो बह गए वो तुझे ढूंढते रह गए पर तुम उनको समझते ही रह गए क्योंकि तुम जो अपने ना थे ये आंसू भी जान गए तुमको पहचान गए एक दिन गिरते आंसू ने पूछ ही लिया मुझे गिरा दिया है उसके लिए जिसके लिए तुम कुछ भी नहीं जिसने तेरी कभी कद्र ही नहीं की ज़िन्दगी को मैंने बहुत समझाया अक्सर ऐसे फसाने होंगे ऐसे ही जीने होंगे। — % & #कोराकाग़ज़ #collabwithकोराकाग़ज़ #विशेषप्रतियोगिता #kkdrpanchhisingh #गणतंत्रभारत #गणतंत्रदिवस2022