जंग वो सारागढ़ी की इतिहास के पन्नों में दबी पड़ी थी आज सामने आई है, उन 21 सैनिकों की शहादत आज पता चल पाई है वो 1 किला 21 जानें दस हज़ार पर भारी थी वो जीत गए जंग मरकर भी पर हिम्मत कभी न हारी थी दुश्मन चारों और था काल भी जोर था कदम पर डिगे नही साहस पुरजोर था मौत भी उस दिन शिद्दत से आई होगी लेने उन्हें दुश्मन की भी सांसे फूल गयी थी देखकर लड़ते जिन्हें आज़ाद होकर लड़े वो बनकर गुलाम नही जानबूझकर शहादत गले लगाना इतना भी आसान नही और चाहे कोई मरता हो इश्क में ,धोख में लेकिन शहादत से बढ़कर इस दुनिया मे कोई मुकाम नही वो लड़े थे अंतिम सांस तक ,बेशक गोलियां नही थी पर दुश्मन के आगे झुके नही गोलियां सीने पर खाई उन्होंने अनगिनत अपने पर एक कदम भी पीछे हटे नही उस दिन वो पगड़ी भी केसरी वो जो बहा लहू भी केसरी और गिरा वो जिस मिट्टी पर उस दिन वो मिट्टी भी केसरी आज लिखता हूँ ,उन शहीदो को तो मेरे शब्द भी केसरी,मेरी कलम भी केसरी