मैं मजदूर इन सड़को पर भटक रहा हूँ। इस कड़ी धूप में चटक रहा हूँ।। इस शहर की भूखमरी से जुझकर। अपने गाँव की और सटक रहा हूँ।। दिलों दिमाग में घर का बोझ लिये। अपने माता-पिता के खर्च का सोच लिये।। इन तपती हवाओ में इक नयी साँस लिये। अपने हाथों में छोटी सी बाँस लिये।। सरकार के सभी वादो से टूटकर। जिंदगी की कुछ रातों से रूठकर।। न जाने मेरा सफ़र कब पुरा होगा। पता नहीं अच्छा या बुरा होगा।। मैं मजदूर इन सड़को पर भटक रहा हूँ। इस कड़ी धूप में चटक रहा हूँ।। इस शहर की भूखमरी से जुझकर। अपने गाँव की और सटक रहा हूँ।। Written by-Nemi Kumawat ✍✍ #Poetry on labour