हम भूल न तुमको पाएंगे पर शायद हम मर जाएंगे अनजान मेरी तकलीफ़ से तुम हम जिंदा लाश बन जाएंगे किस बात की तुझको फ़िक्र मेरी किस रात ढलेगी उम्र मेरी न जाने कौन सी खता हुई किस जुर्म की मुझको सजा मिली हां , प्यार भी तुमसे करते थे इकरार भी तुमसे करते थे न शौक मुझे बतलाने की किस दर्द से तड़पा करते हैं यूं वफा - वफा चिल्ला करके मौसम को सर्द क्यों करते हो घबड़ा नहीं वो जान- ए- जिगर "बेवफा" की कद्र भी करता हूं जा खुश रह तू उस दुनिया में हम तो अलविदा कहते हैं इस जहां की मुझको चाह नहीं "बेदर्द परिंदे" रहते हैं :- रौशन कुमार "प्रिय" #कविता:- हम भूल न तुमको पाएंगे।