अविश्वसनीय पल्लव की डायरी सहचर चराचर जीवो को बनाना चाहता हूँ धरती की खुशियां गगन तक पहुचाना चाहता हूँ लालचों ने जिंदगी छीन ली दाना चुनते हुये परिन्दों को कत्ल कर प्रकृति की प्रजातियां छीन ली मौजे परिन्दों के साथ करते थे सुबह शाम छतों मुडेरो पर अपनी भाषा मे बुलाते थे हम सभी भी उनसे बतियाते थे अपने परिवार का हिस्सा बनाते थे मगर आज हैवान और जानवर हम है उनके गोश्त की तलाश में हम मानव पीछे पड़े हुऐ है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" उनके गोश्त की तलाश में मानव पीछे पड़े हुऐ है #Unbelievable