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ग़ज़ल ------- अधर-रसपान करने दे अभी अंकों में भरने द

ग़ज़ल
-------
अधर-रसपान करने दे
अभी अंकों में भरने दे ।

तू अपने भाव में निशि-दिन
मुझे अविराम तरने दे ।

नयन की झील में अपने
सतत निर्बाध झरने दे ।

बिना अब प्रश्न-चिह्नों के
पनाहों में विचरने दे ।

तनिक अब सब्र कर गुंजन
जरा उसको सँवरने दे ।
                - विजय गुंजन
ग़ज़ल
-------
अधर-रसपान करने दे
अभी अंकों में भरने दे ।

तू अपने भाव में निशि-दिन
मुझे अविराम तरने दे ।

नयन की झील में अपने
सतत निर्बाध झरने दे ।

बिना अब प्रश्न-चिह्नों के
पनाहों में विचरने दे ।

तनिक अब सब्र कर गुंजन
जरा उसको सँवरने दे ।
                - विजय गुंजन