जो मैं हूँ! वो मैं कभी दिखती नही. और जो मैं नहीं हूँ! वो मैं कभी दिखाना नहीं चाहती. ज़िन्दगी-ऐ-कश्मकश में इतनी डूबी हूँ, के अब! में मुसासर किसी का होना नहीं चाहती. खुश हूँ! मैं दिखावी दुनिया की रंग में रंग कर. महज अपने जज़्बात का मोहल्ला अभी मैं बसना नही चाहती. #Jazbaado ka mohallah